Thursday, 17 July 2014

देश के ज्यादातर मुसलमान पुलिस को सांप्रदायिक और भ्रष्ट मानते हैं


नई दिल्ली.देश के ज्यादातर मुसलमान पुलिस को सांप्रदायिक और भ्रष्ट मानते हैं। सांप्रदायिक दंगों के दौरान पुलिस के रवैये पर पुलिस की ओर से तैयार की गई एक रिपोर्ट में खुद पुलिस अधिकारियों ने इस सच को स्वीकार किया है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक डीजीपी स्तर के तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने इस रिपोर्ट में यह माना है कि देश के अल्पसंख्य वर्ग में यह धारणा है कि पुलिस मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त ,असंवेदनशील और भ्रष्ट है। इतना ही पुलिस के रवैये में सुधार के लिए तैयार की गई इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि आम जनता भी पुलिस में पेशेवर रुख  की कमी मानती है। यह रिपोर्ट अल्‍पसंख्‍यकों को लेकर पुलिस को और ज्‍यादा संवेदनशील बनाने की योजना के तहत तैयार की गई थी।
 
तीन राज्यों के डीजीपी ने किया सच से सामना-
पुलिस के रवैये पर तैयार की गई इस रिपोर्ट में महाराष्ट्र के डीजीपी संजीव दयाल, उत्तरप्रदेश के डीजीपी देवराज नागर और तमिलनाडु के डीजीपी के रामानुजम(जो आईबी से भी जुडे हैं) मानते हैं कि सांप्रदायिक दंगों के दौरान माइनॉरटीज में पुलिस अधिकारियों के प्रति विश्वास की कमी दिखाई देती है। 

पुलिस बलों में मुसलमानों की कम संंख्‍या भी है अविश्वास की वजह-
-रिपोर्ट में कहा गया है कि मुस्लिम समुदाय में पुलिस के रवैये को लेकर अविश्वास खुद पुलिस अधिकारियों के तौर-तरीकों की वजह से आया है।
-पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने माना है कि कुछ राज्यों में सांप्रदायिक दंगों के दौरान पुलिसवालों के व्यवहार ने माइनॉरिटीज के बीच पुलिस की छवि को लेकर अविश्वास पैदा किया है। रिपोर्ट में इसे सुधारने पर जल्द ही जोर देने की बात कही गई है। हालांकि अभी इस रिपोर्ट पर कार्रवाई का ही इंतजार है। 
-यह रिपोर्ट 2013 में नई दिल्ली में हुई राज्यों के डीजीपी की मीटिंग के दौरान केंद्र सरकार को सौंपी गई थी। रिपोर्ट अभी भी केंद्र सरकार के पास है। 
-रिपोर्ट में पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने मुसलमानों में बनी पुलिस की इस नकारात्मक छवि में सुधार लाने और दंगों को रोकने के लिए बेहतर फ्रेमवर्क के साथ ही सभी राज्‍यों के लिए बेहतर कम्‍युनिटी पुलिसिंग प्‍लान बनाने का सुझाव दिया है। 
-रिपोर्ट में पुलिस का इस सच से भी सामना हुआ है कि पुलिस बलों में मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व बेहद कम है। रिपोर्ट के मुताबिक 2013 में देश की राजधानी दिल्ली में ही पुलिस बलों में महज पौने दो फीसदी मुस्लिम प्रतिनिधित्व है। 

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