मन वह है , "जो तुम्हें यह अनुभव कराता है कि तुम शरीर हो ,तथा शरीर से सम्बंधित सभी वस्तुओं को तुम 'मेरा है ' ,समझते हो ,जो इंद्रियों के माध्यम से ध्येय पदार्थ की ओर भागता है ताकि उनसे आनंद का अनुभव प्राप्त कर सके |इस प्रकार वह चंचल -अस्थिर बना रहता है व् हर समय एक विषय से दूसरे विषय की ओर भागता फिरता है "

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