लौकी में विटामिन ए, बी और सी मिलता है। यह गरिष्ठ, रेचक और बलप्रद होती है। अशक्त और रोगियों के लिए यह लाभदायक है। गर्म प्रकृति वालों के लिए लौकी का सेवन ठंडक और पोषण देने वाला एवं अधिक हितकारी है। नर्म, चिकनी, सफेद लौकी का सेवन ही करना चाहिए।
इसके बीज का उपयोग औषधि के रूप में होता है। लौकी हृदय के लिए हितकारी, पित्त व कफ को नष्ट करती है। वीर्यवद्र्धक, रुचि उत्पन्न करने वाली और धातु पुष्टि को बढ़ाती है। लौकी गर्भ की पोषक है। सगर्भा स्त्री के लिए लौकी पुष्टिदायक है। इसके सेवन से गर्भावस्था की कब्जियत दूर हो जाती है।
अर्श-मस्से में : लौकी के पत्तों का रस निकाल कर अर्श-मस्से पर लगाने से दूर हो जाता है।
क्षय रोग में : लौकी का रस निकाल कर थोड़ा शहद या चानी के साथ सेवन करने से शरीर का दाह, गले की जलन, रक्त विकार, फोड़ा, शीतपित्त, रक्त में गर्मी बढऩे पर, गले या नाक से रक्त आने पर, क्षय रोग आदि के रोगों में बहुत ही उपयोगी है।
दिमाग की गर्मी में : लौकी को काट कर, दो टुकड़े करके सिर पर बांधने से दिमाग में यदि गर्मी चढ़ गई हो तो वह उतर जाती है।
बुखार में : लौकी को कद्दूकस पर घिस कर सिर और माथे पर बांधने से बुखार की गर्मी का शोषण करती है।
दूसरी विधि : यदि बुखार की गमी दिमाग में चढ़ जाए, इसके लिए ज्यादा बुखार में लौकी को छील कर सिर और माथे पर बांधने से बुखार कम हो जाता है।
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