Friday, 25 July 2014

kick



सलमान खान इस दफा डेविल बनकर अपने ही अंदाज में अपनी ईदी लेने आए हैं, जिसे वह लेकर आराम से निकल जाएंगे। यह फिल्म आपको हिला-डुलाकर 'किक' दे ही देगी।

'किक' 2009 में इसी नाम से आई तेलुगु फिल्म की रीमेक है। सलमान का वही अंदाज, वही राग लेकिन 'किक' नई। फिल्म देखते हुए आपको लगेगा कि ये हो क्या रहा है। सलमान को देसी रॉबिनहुड कहें तो शक ना करें, क्योंकि फिल्म में तो वह रॉबिनहुड के भी बाप हैं। वह जब चाहें, जो चाहें कर सकते हैं? पुलिस की भीड़ पीछे और बच कर निकल सकते हैं? वह 45 की उम्र में भी पुलिस में भर्ती हो सकते हैं और सीधे होम मिनिस्टर की सिफारिश पर केस हैंडल कर सकते हैं। वह एमएलए की बेटी को उठाकर 25-30 गुंडों के बीच शादी करवा सकते हैं। यही नहीं और भी बहुत कुछ। चेतन भगत के ऊल-जलूल लॉजिक में सलमान के स्टारडम के तड़के वाली डिश है 'किक', जिसमें हॉलीवुड फिल्मों के एक्शन को पिरो दिया गया है।

कहानी: फिल्म की कहानी देवी लाल सिंह (सलमान खान) के इर्द-गिर्द घूमती है। देवी सिविल इंजीनियरिंग में ग्रैजुएट है और वह 30 से भी ज्यादा नौकरियां खाली अपनी किक (एनर्जी, एडवेंचर या सिंपल कहें तो मजा) के चक्कर में छोड़ चुका है, क्योंकि उसे अपने काम से किक नहीं मिलती। देवी लोगों की मदद करता है और इससे उसे किक मिलती है। एक दिन देवी अपने दोस्त की शादी उसकी प्रेमिका से करवाने के लिए एमएलए की बेटी को भगा ले जाता है। यहीं उसकी मुलाकात एक साइकोलॉजिस्ट शानिया (जैकलीन फर्नांडिज) से होती है। देवी उसे पहली ही नजर में दिल दे बैठता है। शानिया भी शुरुआत में देवी की हरकतों से परेशान हो उसे हेडेक बता कर दूर भागती है, लेकिन फिर जैसा कि फिल्मों में आम तौर पर होता है, शानिया को देवी से प्यार हो जाता है। शानिया देवी को अपने पिता (सौरभ शुक्ला) से मिलवाती है।
 
इसी मुलाकात के दौरान शानिया के पिता देवी से घरजमाई बनने की बात कह देते हैं, क्योंकि देवी कोई काम नहीं करता। देवी को यह बात पसंद नहीं आती और वह उठकर चल देता है। शानिया भी देवी के पीछे जाती है और अपने पिता की बात को जायज ठहराती है। देवी इस बात से नाराज होकर कि क्या पैसा कमाना ही सबकुछ है, कहकर शानिया से दूर हो जाता है और पैसे कमाने को ही अपनी किक बना लेता है। शानिया देवी से दूर बर्लिन में एक साल तक नॉर्मल होने की कोशिश में जुटी है, जबकि उसके पिता चाहते हैं कि वह शादी कर ले। इस बीच हिमांशु त्यागी (रणदीप हुड्डा) जो एक जाबांज इंडियन कॉप (पुलिसकर्मी) है, अपने केस के सिलसिले में बर्लिन पहुंचता है। शानिया के पिता उससे हिमांशु से मुलाकात करने की बात कहते हैं। हिमांशु को डेविल की तलाश है, जिसका चेहरा किसी ने नहीं देखा है। देवी जो डेविल बन चुका होता है, हिमांशु को चैलेंज देकर चोरियां करता है और बच निकलता है। एक वारदात के दौरान डेविल का चेहरा शानिया और हिमांशु, दोनों के सामने उजागर हो जाता है, लेकिन वह बच निकलता है। इसके बाद की कहानी देवी के डेविल बनने के किस्से को समेटती हुई हॉलीवुड के देसी एक्शन और 'टॉम एंड जैरी' स्टाइल में अंत तक पहुंचती है।
 
आखिर देवी क्यों डेविल बना? डेविल क्यों लोगों को लूट रहा है? डेविल का मकसद क्या है? क्या डेविल अपने काम में कामयाब हो पाता है? क्या शानिया को देवी वापस मिल पाता है? क्या हिमांशु त्यागी अपने इस मिशन को भी पूरा कर पाता है? इन्हीं तमाम सवालों का जवाब समेटती हुई फिल्म अपने अंत तक पहुंचती है। 
 
एक्टिंग: सलमान खान डेविल और देवी लाल दोनों जगह अपनी हटके, हमेशा एनर्जेटिक और लाउड एक्टिंग से अपने किरदार को जीते हैं। जैकलीन फर्नांडिज के हिस्से जितने भी सीन्स फिल्म में आए, वह जमी हैं। फिल्म का सरप्राइज पैकेज हैं नवाजुद्दीन सिद्धिकी। नवाजुद्दीन के हिस्से स्क्रीन पर बमुश्किलन 15 से 18 मिनट आए हैं, लेकिन वह अपने किरदार में जमे हैं। कॉप की भूमिका में रणदीप हुड्डा ने बेहतरीन काम किया है। मिथुन, अर्चना पूरण सिंह, सौरभ शुक्ला और संजय मिश्रा ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है।
 
डायरेक्शन: साजिद नाडियाडवाला की बतौर डायरेक्टर यह पहली फिल्म है। साजिद ने अपनी पहली फिल्म के हिसाब से कुछ कमियों को छोड़ दें, तो ठीक-ठाक काम किया है। फिल्म का फर्स्ट हाफ इंट्रोडक्टरी मोड में है, जो कई जगह ऊबाऊ लगता है, लेकिन फिर फिल्म झट से ट्रैक पर भी लौट आती है। फिल्म का सेकंड हाफ ज्यादा कसा हुआ है। साजिद के निर्देशन में एक ही कमी खलती है कि वह पटकथा के मुताबिक सीन्स को टाइट करने के चक्कर में बहुत तेजी से कुछ ऐसे सीन्स फिल्म में पिरोते चले गए जो समझ से परे लगते हैं। अभी साजिद को बहुत कुछ सीखना है।
 
संगीत: हिमेश रेशमिया का संगीत अच्छा है। फिल्म में मिक्का का गाना 'जुम्मे की रात' लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ है। इसके अलावा, सलमान की आवाज में 'हैंगओवर' और 'डेविल' सॉन्ग भी लंबे-चौड़े प्रमोशन के चलते चर्चा पा गए। ओवरऑल फिल्म का संगीत अच्छा है।
 
क्यों देखें:  सलमान के फैन्स के लिए क्या फर्क पड़ता है, अगर उनकी एक्टिंग हमेशा की तरह ही लाउड हो। क्या फर्क पड़ता है वह रोते हुए अच्छे लगें, ना लगें और सबसे बढ़कर सलमान के डांस मूव्स तो एकदम नये हैं ही ना। फिल्म एंटरटेनिंग है। आप देख सकते हैं। बाकी सौरभ शुक्ला, नवाजुद्दीन सिद्धिकी, रणदीप हुड्डा, विपिन शर्मा, संजय मिश्रा और मिथुन चक्रवर्ती के साथ ढेर सारा मसाला इसे एक बार देखने लायक फिल्म बना ही देता है। 

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